11/08/2007

Miil ka patthar

मील का पत्थर

मील का पत्थर,
नहीं जाता मील से एक इंच भी आगे,
न ही खींचता कदम, एक इंच भी पीछे ।
होते हुए जड़,
अपनी तमाम जड़ों के साथ,
घूमता रहता है प्रथ्वी के साथ
उसकी धुरी पर, उसकी कक्षा में,
तय करता, करोड़ों मील ।


उसने देखा था पगडंडी को
अपने सामने ही
पगडंडी से जवान होते,
बदलते, रास्ते में
ठीक उसी तरह जिस तरह
गिट्टियों के ढेर पर खेलते-खेलते
हो गई थी, मुनिया
कोलतार से जले पैरों के साथ,
जवान ।

उसने देखा गांवों को जुड़ते, शहर से
उसने देखा बाप से टूटते, बेटे को,
अभी-अभी जो निकला है
इसी रास्ते, हवा से बातें करते,
‘स्प्लेंडर’ पर, तेजी से ।
मालूम पड़ गया उसे
अब नामुमकिन होगा
किसी भी तरह रोकना,
खप जाना उसका
बाज़ार में।
मैंनें देखा रास्ते को,
बदलते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग में
दौड़ रहीं थीं इच्छाऐं जिन पर,
बे लगाम ।

मैं उसी जगह खड़ा हूँ, सदियों से
राम और रहीम
यहीं से निकले थे
और नहीं था
कोई धर्म ग्रन्थ, उनके हाथों में।
रुके थे एक क्षण राम मेरे पास,
सांस लेने
सोचा मैंनें, कि पता लग जाय मुझे,
शायद छू लें वो,
क्या था मैं पत्थर होने से पहले ?
छोटी सी इच्छा, यह
मेरे सोचते ही, स-शरीर दौड़ भागी
उसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर
और मैं खड़ा रह गया
भौंचक, वहीं।

इसी रास्ते गुजरा था युधिष्ठिर
थका हारा,
सिर्फ़ कुत्ते के साथ ।
वह धर्मराज था
फ़िर भी निपट अकेला था ।
इसी रास्ते से निकली थी रथ यात्रा
जिसके चकों से निकली, शकुनि की आवाज़
फैल रही थी
बड़े-बड़े लाउडस्पीकरों के चोंगों से
‘चल फेंक पासा………
लगा रामलला दाँव पर’
साथ में था एयर-कंडीशंड कारों का काफ़िला
भरे थे जिनमें, वे,
सुनी थी जिननें, सिर्फ़ लोरियों में
खंडहरों की भव्यता ,
धर्म की सान पर चढ़ रही थी धार
और गुबार में फट रही थी दाँत-काटी रोटी।

मैं फिर भी खड़ा था
वहीं,
उसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर
जिसमें थीं अब अनगिनत लेनें
और
हर लेन पर बैठी थीं
महापंचायतें,
चक्का जाम किये ,
एक दूसरे पर त्रिशूल ताने ।
इस सब से पूरी तरह बेखबर,
यकीन मानिये,
सो रही है, बुढाई मुनिया।
शोर-ओ-गुल से बे-वास्ता,
झोपड़े में, थक कर,
दिन भर पत्थर तोड़ कर ।

यकीनन,
मैं हूँ उसी टूटी शिला का अंश
यकीनन,
इंतज़ार में हूँ, मैं, अब भी
किसी राम के गुजरने का,
इसी राष्ट्रीय राजमार्ग से ।

DAYAAN HAATH

बहुत पुरानी नहीं है यह बात
होगा 2004 का कोई दिन
सो कर उठा जब एक सुबह
उठाए जैसे ही हाथ अंगड़ाई लेने
निकल कर कंधे से सीधा हाथ
लग गया बांयें कंधे पर
बायें हाथ के साथ
और सीधे कंधे पर बची सिर्फ़
हवा में लहराते परचम सी
मेरी कमीज़ की दांईं बाँह ।

घबड़ा कर
उठाया हाथ माथा पकड़ने
कि दोनों ही बाँये हाथ उठ आये
और लगे झगड़ने, मुझे सहारा देनें ।
बोले दोनों, नहीं कोई चिंता की बात
संभाल लेंगे हम दोनों
आखिर हैं तो दोनों ही सही सलामत
हुआ क्या कि हैं दोनों ही बाईं तरफ़्।
सहमत होते देख, दोनों को
आई कुछ मेरी भी सांस में सांस।
बाएं हाथ ने,
और सीधे हाथ ने,
जो था अब मेरे बाएं कंधे पर ही
दिया भरोसा मुझे
कोई तकलीफ़ न होगी मुझको।
उम्मीद तो न थी मुझे, लाचारी थी
किया हालात से समझौता।

पहला झगड़ा हुआ उसी रात
बैठा जब जीमने को
उठाया सीधा हाथ, आदतन
जैसे ही कौर ले मुँह की तरफ़
लगा बांया हाथ ज़िद करने
पकड़ लिया सीधे हाथ को, कलाई से
कि देगा वह कौर मुझे ।
समझाया उसे मैनें
शास्त्रों ने कर दिया है निर्धारित सीधे हाथ को
हर शुद्ध धार्मिक कार्यों के लिये,
अर्ध्य- आहुति देने के लिये,
रहना पड़ेगा मर्यादा में
नहीं है शास्त्र सम्मत,
भोजन करना शौच के हाथ से।
लगा शास्त्रार्थ करने इस पर वह
हैं हम दोनों ही बांईं तरफ़
हैं हम दोनों बराबर
उठाते थे तलवार जब दाएँ हाथ में
करता मैं ही था ढाल से तुम्हारी रक्क्षा
नहीं मानता मैं धर्म –शास्त्र, ऊँच-नीच
रख्खो तुम पुंगी बना उसे
खाना है तो खाओ, नहीं रहो भूखे।
खिन्न मन उठ गया थाली से
अध-भूखा ही
किसी तरह थाली में मुँह मार।
चलने लगी इस तरह गाड़ी
किसी तरह पटरी पर
देखते नहीं, झुका रहता हूँ कैसे,
बोझ से बाईं तरफ़
चलता हूँ गि्ड़ते-पड़ते।

मुसीबत होती है उस समय, अक्सर
बढ़ाता हूँ सीधा हाथ जब कभी किसी से मिलाने को
जैसा करता था पहले,
बांया पकड़ लेता है दायें की कलाई
अगर नहीं चाहता कि मिलूँ मैं किसी से
जिसे न चाहता हो वह।
हो गये हैं अजीब हालात,
छूट चुके हैं सब नाते रिश्तेदार, मित्र,
दया से देखते हैं सब
मेरी लहीम–शहीम सुन्दर काया को
और हो जाते हैं चुप, सोच कर
होगा शायद पिछले जन्मों का पाप
कहते हैं मेरे कंधे पर हाथ, पीठ सहलाते,
‘धैर्य रखो, सब ठीक हो जायगा’ ।

‘हर काले बादल में होती है चाँदी की परत नीचे’
जरूर होती होगी
हुआ कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी।
आई एक बहु-राष्ट्रीय कंम्पनी
कहने लगे सी0ई0ओ0 आ कर
क्यों कर रहे हैं जाया अपनी प्रतिभाशाली काया को
भुनाईये इसे, समय रहते
रहा यह एग्रीमेंट, करिये साईन
देंगें हम करोड़ों डॉलर हर साल
करना नहीं है कुछ आपको
रहना है आपको हमारे साथ, रोड शो में
जहाँ-जहाँ ले जाऐं आपको, चलें,
रहेगा सारा इंतज़ाम, वातानुकूलित
बोलना नहीं है आपको कुछ भी
बस रहिये मुस्कराते, है शर्त यही्।
कर दिये दस्तखत करार पर
और निकल पड़ा दुनिया में,
गया जहाँ ले जाया गया
हालाँकि बांये हाथ को नहीं था, पसंद
मेरा इस तरह सौदा करना
पर करे थे कंम्पनी ने उम्दा इंतज़ाम
अच्छा खाना-पीना था,
बढ़िया पहनना ओढ़ना था,
आदत पड़ती जा रही थी, उसको भी
लगने लगा था अच्छा उसे
बस थोड़ी बहुत कुनमुनाहट थी, रुसवाई थी यदा-कदा,
हो चला आश्वस्त मैं
कि हो चला है, उसकी आदत में यह तेवर शुमार।
हो गया दुनिया भर में मशहूर मैं,
ब्रॉंड एम्बे्सेडर अपनी बिकी जिंदगी का
शुमार थी जिसमें हर बिकाऊ चीज़
दिखाई देता था हर विग्यापन में
मेरा मुस्कराता चेहरा और
बाँये कंधे से उठते दोनों हाथ
बांया मुठ्ठी कसे हुए, लाल सलाम मुद्रा में
और
दांया हथेली खोले हुए, हिलते हुए।

इंडिया गेट पर
घूम रहा था लोकेल शूट के लिये, एक दिन,
देखता, राज पथ, बोट क्लब,घास में खेलते बच्चे,
पेड़ के नीचे जोड़े,
कैमरे चल रहे थे, चल रही थी ओ0वी0 वेन, साथ
निकल रहा था शहीद ज्योति के पास से, जब
लगा कि हो गया है, पैज़ामें का नाड़ा,
ढीला
और खिसक रहा है पैजामा मेरा।
संभालने की कोशिश की, नाड़े के छोरों को टटोलते
बाँये कधे पर लगे दोनों हाथों से
खिसकते पैज़ामे से घबरा्ये, थरथराते रहा
सीधा हाथ
उधर खींच लिया बाँये हाथ ने अपना हाथ
और गांठ बाँधने की हर कोशिश, हो गई नाकाम
खिसक गया, पैजामा ।

देखा गया
गिरता हुआ पाज़ामा मेरा
स्लो -मोशन में, बार-बार, सभी चैनलों पर,
ब्रेकिंग न्यूज़ में ।
उस क्षण लगा मुझे,
सीधे हाथ का सीधे कंधे पर होना
चाहे ज़रुरी नहीं हो
उतना धार्मिक कर्मकांडों में,
ज़रुरी है, जितना पैज़ामे के नाड़े की
गाँठ बाँधने के लिये।