बहुत समय से सुप्त था | अब फिर से आपके सामने हूं | इस बीच कुछ लिखा कुछ पढ़ा या यूं कहे कि बहुत कुछ पढ़ा और थोड़ा बहुत लिखा तो ठीक रहेगा| धीरे -धीरे आपके सामने पेश करूंगा |
2/19/2024
4/20/2020
नहीं फर्क पड़ता अब
नहीं फ़र्क पड़ता अब
नहीं फ़र्क पड़ता अब
कि कही जाय बात
कविता में, कहानी में या किसी उपन्यास में ।
लिखा हुआ
सिर्फ़ ह्ज़ूम है अक्षरों का
मौका पड़ने पर जो
निकल जाये सड़कों पर, दंगाईयों सा
सिमट जाय हर हर महादेव में ।
वैसे भी भीड़ में, सड़क पर,
औरत के पेट को चीर,
भ्रूंण को भाले की नोक पर लहराने के लिये
जरूरत नहीं है अक्षरों की
जो किंडरगार्डन में
लकडी या प्लास्टिक के गुटकों पर छपे
बच्चों को बहलाने के काम आते हैं
या फिर
चार्ट में सुशोभित
पढ़ाते हैं अशिक्षित, अर्ध-शिक्षित, सुशिक्षित अनपढ़ों को
क से कटुआ, म से मोबाईल, र से रिश्वत
ट से टू-इन-वन, त्र से त्रिशूल, ध से धर्म,
बड़ी ई से ईसाई
ज से जाति
मेरी अलग और तेरी अलग
स से संस्क्रति, तुम्हारी नहीं
ह से हिन्दू,…………
गर्व से कहो हम हिन्दू्…
ड से डिश, ग से गोत्र
ब से बजरंग बली,
आ से आसाराम ।
प्रभात फेरी पर निकलते नहीं, अक्षर
क्योंकि दफ़ा एक सौ चवालीस का भय है ।
वैसे भी
समूह बना कर उनका
कुछ भी अर्थवान कहने ही कोशिश करना,
बहरे का बीन बजाना है
क्योंकि सब यहाँ हैं
आँख के पूरे, कान के पूरे,
अंधे-बहरे ।
सोचते होंगे आप
अज़ीब अहमक है यह
करे जा रहा है पन्ने पर पन्ने काले इन्हीं अक्षरों से
और चूकता नहीं उन्हें कोसने ।
बता दूँ साहब
बड़ी मुश्किल से लाया हूँ
मिन्नतें कर,
साम-दाम दंड-भेद से
भाई और चारे को साथ
लगा है भाई, दाऊद के साथ
और चारा, लालू के साथ
मिल रही है, मलाई, उन्हीं के साथ
थोड़ा जगाया ज़ज़्बा देश प्रेम का, मानवता का
राजी हुए
श्री-फल और कश्मीरी दुशाले पर
अपने कीमती वक्त से,
अन्य व्यस्तताओं के बीच से कुछ पल निकाल,
सदारत करने इन पन्नों पर
करूँ मैं इन्हें आमंत्रित इससे पहले, दो शब्दों के लिये
करें आप स्वागत इनका
जोरदार तालियों से
जो भी कहें, ये,
कहा अन-कहा,
लें सिर आँखों पर
लूँगा नहीं आपका और ज्यादा वख्त
करता हूँ माननीय अतिथियों से विनती
आयें मंच पर,
करें अनुग्रहीत हमें
जयहिन्द ।
नहीं फ़र्क पड़ता अब
कि कही जाय बात
कविता में, कहानी में या किसी उपन्यास में ।
लिखा हुआ
सिर्फ़ ह्ज़ूम है अक्षरों का
मौका पड़ने पर जो
निकल जाये सड़कों पर, दंगाईयों सा
सिमट जाय हर हर महादेव में ।
वैसे भी भीड़ में, सड़क पर,
औरत के पेट को चीर,
भ्रूंण को भाले की नोक पर लहराने के लिये
जरूरत नहीं है अक्षरों की
जो किंडरगार्डन में
लकडी या प्लास्टिक के गुटकों पर छपे
बच्चों को बहलाने के काम आते हैं
या फिर
चार्ट में सुशोभित
पढ़ाते हैं अशिक्षित, अर्ध-शिक्षित, सुशिक्षित अनपढ़ों को
क से कटुआ, म से मोबाईल, र से रिश्वत
ट से टू-इन-वन, त्र से त्रिशूल, ध से धर्म,
बड़ी ई से ईसाई
ज से जाति
मेरी अलग और तेरी अलग
स से संस्क्रति, तुम्हारी नहीं
ह से हिन्दू,…………
गर्व से कहो हम हिन्दू्…
ड से डिश, ग से गोत्र
ब से बजरंग बली,
आ से आसाराम ।
प्रभात फेरी पर निकलते नहीं, अक्षर
क्योंकि दफ़ा एक सौ चवालीस का भय है ।
वैसे भी
समूह बना कर उनका
कुछ भी अर्थवान कहने ही कोशिश करना,
बहरे का बीन बजाना है
क्योंकि सब यहाँ हैं
आँख के पूरे, कान के पूरे,
अंधे-बहरे ।
सोचते होंगे आप
अज़ीब अहमक है यह
करे जा रहा है पन्ने पर पन्ने काले इन्हीं अक्षरों से
और चूकता नहीं उन्हें कोसने ।
बता दूँ साहब
बड़ी मुश्किल से लाया हूँ
मिन्नतें कर,
साम-दाम दंड-भेद से
भाई और चारे को साथ
लगा है भाई, दाऊद के साथ
और चारा, लालू के साथ
मिल रही है, मलाई, उन्हीं के साथ
थोड़ा जगाया ज़ज़्बा देश प्रेम का, मानवता का
राजी हुए
श्री-फल और कश्मीरी दुशाले पर
अपने कीमती वक्त से,
अन्य व्यस्तताओं के बीच से कुछ पल निकाल,
सदारत करने इन पन्नों पर
करूँ मैं इन्हें आमंत्रित इससे पहले, दो शब्दों के लिये
करें आप स्वागत इनका
जोरदार तालियों से
जो भी कहें, ये,
कहा अन-कहा,
लें सिर आँखों पर
लूँगा नहीं आपका और ज्यादा वख्त
करता हूँ माननीय अतिथियों से विनती
आयें मंच पर,
करें अनुग्रहीत हमें
जयहिन्द ।
3/26/2011
अ poem
I lie
Just below the tombstone
Of ignorance
With hands
Cuddling a lamp.
It was the night
Before my coming
That I visited
The past of intolerance
Sitting quietly
Amongst graves
Freshly dug.
The future
Walks with hoe
On his bent shoulders
Leaving a rose bud
On my tombstone.
25/3/2011
Just below the tombstone
Of ignorance
With hands
Cuddling a lamp.
It was the night
Before my coming
That I visited
The past of intolerance
Sitting quietly
Amongst graves
Freshly dug.
The future
Walks with hoe
On his bent shoulders
Leaving a rose bud
On my tombstone.
25/3/2011
3/19/2011
3/07/2011
9/10/2010
3/09/2010
mahila divas
लड़्की जो
फ़ुदक रही है, नुक्कड़ पर
बस के इंतज़ार में
जमीन पर रखे बस्ते के पास
कमर पर दोनों हाथ रखे
भाई के साथ,
खड़ी होगी
किसी और शहर में
किसी और समय
किसी और नुक्कड़ पर
पति को टिफ़िन दे
सबेरे-सबेरे
दफ़्तर रवाना कर
बच्चों की बस के इंतज़ार में
किसी और नुक्कड़ के मकान की ग्रहणी
से बतयाती
जैसे कर रही है उसकी मां
बच्चों को बिठा कर
बस में,
चोंक कर भागती
घर की ओर
कि आ गई होगी
बाई काम वाली
कि आती होगी जमादारनी,
धोबिन,
नहाना धोना बाकी है
पूजा पाठ
घर की साफ़-सफ़ाई
इस सब से अनजान कि
पार्लियामेंट में हो चुकी है
जूतम-पजार
उसे ले कर
उन रोटियों को ले कर
सिंकती नही जो कम से कम
उसके तवे पर
बच्ची कूद रही है
एक टांग पर
अपने पूरे बचपने को ओढ़
सड़क पर
बस के आने के इंतजार में
९/३/२०१०
फ़ुदक रही है, नुक्कड़ पर
बस के इंतज़ार में
जमीन पर रखे बस्ते के पास
कमर पर दोनों हाथ रखे
भाई के साथ,
खड़ी होगी
किसी और शहर में
किसी और समय
किसी और नुक्कड़ पर
पति को टिफ़िन दे
सबेरे-सबेरे
दफ़्तर रवाना कर
बच्चों की बस के इंतज़ार में
किसी और नुक्कड़ के मकान की ग्रहणी
से बतयाती
जैसे कर रही है उसकी मां
बच्चों को बिठा कर
बस में,
चोंक कर भागती
घर की ओर
कि आ गई होगी
बाई काम वाली
कि आती होगी जमादारनी,
धोबिन,
नहाना धोना बाकी है
पूजा पाठ
घर की साफ़-सफ़ाई
इस सब से अनजान कि
पार्लियामेंट में हो चुकी है
जूतम-पजार
उसे ले कर
उन रोटियों को ले कर
सिंकती नही जो कम से कम
उसके तवे पर
बच्ची कूद रही है
एक टांग पर
अपने पूरे बचपने को ओढ़
सड़क पर
बस के आने के इंतजार में
९/३/२०१०
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